http://www.vplnews.com/indian-oil-tanker-cow-turned-out-to-be-unruly-raging-hindu/
[5/20, 6:00 PM] रामघाट रोड़ पर शाहपुर के पास इन्डियन आयल का टैंकर अनियंत्रित होकर पलट गया. शुक्रवार सुबह हुयी घटना की जानकरी मिलने पर इलाका पुलिस मौके पर पहुंची ! टैंकर के भीतर खचाखच गायों को देखकर पुलिस के होश उड़ गए. पुलिस ने आनन-फानन में टैंकर में भरी गायों को बहार निकला. सेकड़ो गायों में से आधा दर्जन से ज्यादा गाय मर चुकी थी. पुलिस ने जेसीवी मशीन मांगकर गया को दफ़न करा दिया !
17 मे 2016 - 12:15 AM IST
नवी दिल्ली - गोवंश व गोशाळांचे जतन करण्याचा आदेश केंद्र सरकारने दिला आहे. या पार्श्वभूमीवर देशी गायींच्या जतनासाठी खास दूध उत्पादन प्रकल्प उभा करणे, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार हमी योजनेंतर्गत (मनरेगा) चारानिर्मिती करणे, गायींची बेकायदा तस्करी व कत्तलखान्यांवर कारवाई करण्यासाठी पशू कल्याण खाते अधिक सक्षम बनविणे अशा उपाययोजना करण्यात येत आहेत.
दिल्लीत सोमवारी आयोजित केलेल्या "गोवंश' व "गोशाळा' या विषयावरील राष्ट्रीय चर्चासत्रात केंद्रीय वनमंत्री प्रकाश जावडेकर व कृषी मंत्री राधामोहनसिंह यांनी ही माहिती दिली. राज्य सरकार, शेतकरी व दूध उत्पादकांना गायींचा सांभाळ करण्यासाठी सहकार्य करण्याचे आवाहन त्यांनी केले. जावडेकर म्हणाले," "गायींना चरण्यासाठी राखीव असलेली गायरान जमीन सुरक्षित ठेवण्यासाठी त्यांचे मंत्रालय उपाययोजना आखीत आहे. रोजगार हमी योजनेसारख्या सरकारी उपक्रमांच्या माध्यमातून गायींसाठी पौष्टिक चाऱ्याची निर्मिती करण्यात येईल.''
"गायरान जमिनीचे रक्षण करणे हे सर्वांत महत्त्वाचे आहे. याविषयी सरकार नवीन योजना व प्रस्ताव तयार करीत असून, विविध राज्य सरकारांनाही लेखी सूचना देण्यात येणार आहेत. वनांमध्ये काही क्षेत्र गायींसाठी पौष्टिक व दर्जेदार चारानिर्मितीसाठी राखीव ठेवण्याचा प्रस्ताव आहे. हा चारा शेतकरी व गोशाळांना मोफत पुरविण्यात येईल,'' अशी माहिती जावडेकर यांनी दिली.
गायींची तस्करी व कत्तल करण्याच्या घटनांची तातडीने दखल घेऊन त्याचा अहवाल एक-दोन महिन्यांत वन खात्याला पाठविण्याचा आदेश देशातील पशू कल्याण मंडळांना दिला आहे. यामुळे अशा घटनांमध्ये सरकारला कारवाई करणे शक्य होईल, असे जावडेकर म्हणाले.
स्वतंत्र दूध उत्पादन प्रकल्प :
देशी गायींसाठी स्वतंत्र दूध उत्पादन प्रकल्प उभा करण्यासाठी कृषी मंत्रालयाने प्रस्ताव मंजूर केला आहे. "ए-2' नावाचा हा उपक्रम प्रथम ओडिशा व कर्नाटकमध्ये उभारण्यात येणार असून, नंतर हरियानातील कर्नालमध्ये तो सुरू करण्याचा विचार आहे, अशी माहिती केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहनसिंह यांनी दिली. राष्ट्रीय गोकूळ मोहिमेसाठी मोदी सरकारने गेली दोन वर्षे 582 कोटी रुपयांचा निधी मंजूर केला होता. पूर्वीच्या आघाडी सरकारने गायींच्या संवर्धनासाठी केवळ 45 कोटींची तरतूद केली होती, असे त्यांनी सांगितले. "गाय ही देशाचा अर्थव्यवस्थेचा कणा आहे. ज्याच्याकडे गायी आहेत, मग तो दलित असो अथवा अन्य कोणत्याही शेतकऱ्याचा भूकबळी जाणार नाही, अशी ग्वाही कृषिमंत्र्यांनी दिली.
तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदाशी को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के दिन वैशाली के गणनायक राजा सिद्धार्थ के घर हुआ था! महावीर स्वामी का तीर्थंकर के रूप में जन्म उनके पिछले जन्मों की सतत् साधना का परिणाम था! कहा गया है कि एक समय महावीर स्वामी का जीव पुरुरवा भील था! संयोगवश उन्होंने सागरसेन नाम के मुनिराज के दर्शन किये! मुनिराज रास्ता भूल जाने के कारण इधर आ निकले थे! मुनिराज के धर्मोपदेश से उन्होंने धर्म धारण किया! महावीर स्वामी के जीवन कि वास्तविक साधना का मार्ग यहीं से प्रारम्भ होता है! बीच में उन्हें कौन-कौन से मार्गों से जाना पड़ा, जीवन में क्या-क्या बाधाएं आयीं और किस प्रकार भटकना पड़ा? यह एक लम्बी और दिलचस्प कहानी है, जो सन्मार्ग का अवलम्बन कर जीवन के विकास कि प्रेरणा देती है! उन्होंने भोगों को अनंत बार भोगा, फिर भी उन्हें तृप्ति नहीं हुई! अतः उनका भोगों से मन हट गया, जब किसी चीज कि चाह नहीं रही, परकीय संयोगों से बहुत कुछ छुटकारा मिल गया! फिर जो रह गया उससे भी छुटकारा पाकर महावीर स्वामी मुक्ति की रह पर चले!
मार्गशीर्ष कृष्ण दसम सोमवार, ५६९ ईसा पूर्व को मुनि दीक्षा लेकर वर्धमान स्वामी ने शालवृक्ष के नीचे तपस्या आरम्भ कर दी! उनकी तप साधना बड़ी कठिन थी! महावीर स्वामी कि साधना मौन साधना थी, जब तक उन्हें पूर्ण ज्ञान की उपलब्धि नहीं हो गयी, तब तक उन्होंने किसी को उपदेश नहीं दिया! गौतम उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) हुए! उनकी धर्मसभा समवसरण कहलायी! इसमें मनुष्य, पशु-पक्षी आदि सभी प्राणी उपस्थित होकर धर्मोंपदेश का लाभ लेते थे!
लगभग ३० वर्ष तक उन्होंने सारे देश में भ्रमण कर लोकभाषा प्राकृत में सदुपदेश दिया और कल्याण का मार्ग बतलाया! संसार-समुद्र से पार होने के लिए उन्होंने तीर्थ कि रचना की, अत: वे तीर्थंकर कहलाये!
आचार्य समंतभद्र ने भगवान के तीर्थ को सर्वोदय तीर्थ कहा है! व्यक्ति के हित के साथ-साथ महावीर के उपदेश में समष्टि के हित कि बात भी निहित थी! उनका उपदेश मानव मात्र के लिए सिमित नहीं था, बल्कि प्राणी मात्र के हित कि भावना उसमें निहित थी! महावीर भ्रमण परम्परा के उन व्यक्तियों में से थे जिन्होंने यह उदघोष किया था कि प्राणीमात्र समान है, मनुष्य और क्षुद्र कीट-पतंग में आत्मा के अस्तित्व कि अपेक्षा कोई अंतर नहीं है! उन्होंने समाज में अहिंसा के महत्व को पुनर्स्थापित किया!
भगवान महावीर स्वयं बड़े गौभक्त भी थे, सभी जीवों को एक समान मानते हुए भी उन्हें गौमाता से विशेष स्नेह रहा, तभी तो उन्होंने अपने अनुयायियों को ६०,००० गायों के पालन का आदेश दिया! इस बात से यह सिद्ध होता है कि भगवान महावीर स्वामी न केवल गौभक्त थे बल्कि वे समाज को अहिंसक, संस्कारी, प्रगतिशील आदि बनाने में गौमाता की भूमिका से भली-भांति परिचित थे!
जब जैन धर्म चरम पर था तो जैन धर्मी गोरक्षा में सदैव सक्रीय रहते थे! उन्होंने विशाल गोशालाएँ निर्मित की और गौ पालन को जीवनशैली बनाया! उस समय गायों पर क्रूरता, उनकी हत्या आदि पर क़ानूनी प्रतिबंध था! उस समय गायों की संख्या से किसी के भी धन का आकलन होता था! जैन धर्म द्वारा समाज एवं धर्म को गौमाता से किस तरह जोड़ा एवं सम्मानित किया गया इसके कुछ उदहारण हमें इतिहास में मिलते है, जैसे –
उस समय में सर्वाधिक गायों के १० स्वामियों को ‘राजगृह ‘महाशतक’ एवं ‘काशियचुल्निपिता’ कि सम्मानित उपाधि दी जाती थी!
एक-एक व्रज गोकुल में १०,००० गायें हुआ करती थी!
भगवान महावीर स्वामी के अनुयायी आनंद ने ८ गोकुल संचालित करने का संकल्प लिया था!
भगवान महावीर स्वामी ने नारा बुलंद किया था कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकती है! कर्मों के कारण आत्मा का असली स्वरूप अभिव्यक्त नहीं हो पता है! कर्मों को नाश कर शुद्ध बुद्ध निरंजन और सुखरूप स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है! इस प्रकार तीस वर्ष तक सत्व का भली-भाँति प्रचार करते हुए भगवान महावीर अंतिम समय मल्लों कि राजधानी पावा पहुंचे! वहाँ के उपवन में कार्तिक कृष्ण अमावस्या मंगलवार, ५२७ ई .पू. के ७२ वर्ष की आयु में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया!
गोबर की कुटिया में ठहरेंगे मोदी !
अनादिकाल से मानवजाति गोमाता की
सेवा कर अपने जीवन को सुखी,
सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं
सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है.
गोमाता की सेवा के माहात्म्य से
शास्त्र भरे पड़े है. आईये शास्त्रों की
गो महिमा की कुछ झलकियां देखे -
गौ को घास खिलाना कितना पुण्यदायी
..............................................
तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से
जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को
भोजन कराने से जिस पुन्य की प्राप्ति
होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास,
तपस्या, महादान तथा हरी की आराधना
करने पर जो पुन्य प्राप्त होता है,
सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा,
सम्पूर्ण वेदों के पढने तथा समस्त
यज्ञो के करने से मनुष्य जिस पुन्य
को पाता है, वही पुन्य बुद्धिमान पुरुष
गौओ को खिलाकर पा लेता है !
गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति
.................................
जो पुरुष गौओ की सेवा और सब प्रकार
से उनका अनुगमन करता है, उस पर
संतुष्ट होकर गौए उसे अत्यंत दुर्लभ
वर प्रदान करती है !
गौ सेवा से मनोकामनाओ की पूर्ती
..........................................
गौ की सेवा याने गाय को चारा डालना,
पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना,
रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि
करनेवाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या,
सुख आदि जिस-जिस वस्तु की ईच्छा
करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती
है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ
नहीं होती.
भगवान् शिव कहते है-हे पार्वती!
सम्पूर्ण गौए जगत में श्रेष्ठ है. वे
लोगो को जीविका देने के कार्य में
प्रवृत हुई है. वे मेरे अधीन है और
चन्द्रमा के अमृतमय द्रव से प्रकट हुई
है. वे सौम्य, पुन्मयी, कामनाओं की
पूर्ती करने वाली तथा प्राणदायिनी है.
इसलिए पुन्य प्राप्ति की इच्छा वालो
को सदैव गायो की पूजा, सेवा (घास
आदि खिलाना , पानी पिलाना, रोगी गाय
का ईलाज कराना आदि-आदि) करनी
चाहिए !
भूमि दोष समाप्त होते है
.............................
गौओ का समुदाय जहा बैठकर
निर्भयतापूर्वक साँस लेता है, उस
स्थान की शोभा को बाधा देता है और
वह के सारे पापो को खीच लेता है !
सबसे बड़ा तीर्थ गौ सेवा
.............................
देवराज इंद्र कहते है- गौओ में सभी
तीर्थ निवास करते है. जो मनुष्य गाय
की पीठ छोटा है और उसकी पूछ को
नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में
तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर
स्नान कर देता है !
असार संसार छेह सार पदार्थ
..................................
भवान विष्णु, एकादशी व्रत, गंगानदी,
तुलसी, ब्रह्मण और गौए - ये ६ इस
दुर्गम असार संसार से मुक्ति दिलाने
वाले है !
मंगल होगा
...............
जिसके घर बछड़े सहित एक भी गाय
होती है, उसके समस्त पाप्नाष्ट हो
जाते है और उसका मंगल होता है.
जिसके घर में एक भी गौ दूध देने वाले न
हो उसका मंगल कैसे हो सकता है और
उसके अमंगल का नाश कैसे हो सकता
है !
ऐसा न करे
..............
गौओ, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब
कुछ दिया जाता है उस समय जो न देने
की सलाह देते है. वे मरकर प्रेत बनते
है !
गोपूजा - विष्णुपूजा
.......................
भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते
है के हे देवराज! जो मनुष्य अश्वत्थ
वृक्ष, गोरोचन और गौ की सदा पूजा
सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं,
असुरो और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण
जगत की भी पूजा हो जाते है. उस रूप में
उसके द्वारा की हुई पूजा को मई
यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर
ग्रहण करता हूँ !
गोधूली महान पापो की नाशक है
........................................
गायो के खुरो से उठी हुई धूलि, धान्यो
की धूलि तथा पुट के शरीर में लगी धूलि
अत्यंत पवित्र एवं महापापो का नाश
करने वाले है !
चारो समान है
.................
नित्य भागवत का पाठ करना, भगवान्
का चिंतन, तुलसी को सीचना और गौ
की सेवा करना ये चारो समान है !
गो सेवा के चमत्कार
.........................
गौओ के दर्शन, पूजन, नमस्कार,
परिक्रमा, गाय को सहलाने, गोग्रास
देने तथा जल पिलाने आदि सेवा के
द्वारा मनुष्य दुर्लभ सिधिया प्राप्त
होती है.
गो सेवा से मनुष्य की मनोकामनाए
जल्द ही पूरी हो जाती है.
गाय के शरीर में सभी देवी-देवता, ऋषि
मुनि, गंगा आदि सभी नदिया तथा तीर्थ
निवास करते है. इसीलिये गोसेवा से
सभी की सेवा का फल मिल जाता है.
गे को प्रणाम करने से - धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष इन चारो की प्राप्ति
होती है. अतः सुख की इच्छा रखने वाले
बुद्धिमान पुरुष को गायो को निरंतर
प्रणाम करना चाहिए.
ऋषियों ने सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम
किया जाने वाला धर्म गोसेवा को ही
बताया है.
प्रातःकाल सर्वप्रथम गाय का दर्शन
करने से जेवण उन्नत होता है.
यात्रा पर जाने से पहले गाय का दर्शन
करके जाने से यात्रा मंगलमय होती है.
जिस स्थान पर गाये रहती है, उससे
काफी दूरतक का वातावरण शुद्ध एवं
पवित्र हो है, अतः गोपालन करना
चाहिए.
भगवान् विष्णु भी गोसेवा से सर्वाधिक
प्रसन्न होते है, गोसेवा करनेवाले
कोअनायास ही गोलोक की प्राप्ति हो
जाती है.
प्रातःकाल स्नान के पश्चात अर्व्प्रथम
गाय का स्पर्श करने से पाप नष्ट होते
है !
गोदुग्ध - धरती का अमृत
...............................
गाय का दूश धरती का अमृत है. विश्व
में गोद्म्ग्ध के सामान पौष्टिक आहार
दूसरा कोई नहीं है. गाय के दूध को
पूर्ण आहार माना गया है. यह
रोगनिवारक भी है. गाय के दूध का कोई
विकल्प नहीं है. यह एक दिव्य पदार्थ
है.
वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना
गोमाता की महान सेवा करना ही है.
क्योकि इससे गोपालन को बढ़ावा
मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय
की रक्षा ही होती है. गाय के दूध का
सेवन कर गोमाता की रक्षा में योगदान
तो सभी दे ही सकते है.
पंचगव्य
...........
गाय के दूध, दही, घी, गोबर रस, गो-
मूत्र का एक निश्चित अनुपात में
मिश्रण पंचगव्य कहलाता है. पंचगव्य
का सेवन करने से मनुष्य के समस्त
पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे
जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाते है.
मानव शरीर ऐसा कोई रोग नहीं है,
जिसका पंचगव्य से उपचार नहीं हो
सकता. पंचगव्य से पापजनित रोग भी
नष्ट हो जाते है.
यदि गो-दुग्ध सेवन के प्रचार को
अधिक महत्त्व दिया जाय तो गोवध तो
अपने आप ही धीरे-धीरे बंद हो —
गौ माता जीस जगह खडी रहकर आनंद पुर्वक चैन की सांस लेती है। वहा वास्तु दोष समाप्त हो जाते है।
गौ माता मे तैतीस कोटी देवी देवताओं का वास है।
गौ माता जीस जगह खुशी से रभांने से देवी देवता पुष्प वर्षा करते है।
गौ माता के गले मे घंटी जरूर बांधे गाय के गले मे घंटी बजने से गौ आरती होती है।
जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पुजा करता है। उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।
गौ माता के खुर्र मे नागदेवता का वास होता है। जहा गौ माता विचरण करती है। उस जगह साप बिच्छू नही आते है।
गौ माता के गोबर मे लक्ष्मी जी का वास होता है
गौ माता के मुत्र मे गंगाजी का वास होता है।
गौ माता के गोबर से बने उपलो का रोजाना घर दुकान मंदिर परिसरो पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता सकारात्मक ऊर्जा मिलती है
गौ माता के ऐक आख मे सुर्य व दुसरी आख मे चन्द्र देव का वास होता है।
गाय इस धरती पर साक्षात देवता है।
गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है। मनोकामना पूर्ण करने वाली है।
गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगो की क्षमता को कम करता है।
गौ माता की पुछ मे हनुमानजी का वास होता है। कीसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पुछ से झाडा लगाने से नजर उतर जाती है।
गौ माता की पीठ पर ऐक उभरा हुआ कुबंड होता है। उस कुबंड मे सुर्य केतु नाडी होती है। रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबंड हाथ फेरने से रोगो का नाश होता है
गौ माता का दुध अमृत है
गौ माता धर्म की धुरी है।
गौ माता के बिना धर्म कि कलपना नही कि जा सकती गौ माता जगत जननी है।
गौ माता पृथ्वी का रूप है
गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है। गौ माता के बिना देवो वेदो की पुजा अधुरी है।
ऐक गौ माता को चारा खिलाने से तैतीस कोटी देवीदेवताओ को भोग लग जाता है।
गौ माता से ही मनुष्यो के गौत्र की स्थापना हुई है।
गौ माता चौदह रत्नो मे ऐक रत्न है।
गौ माता साक्षात मा भवानी का रूप है।
गौ माता के पंचगव्य के बिना पुजा पाठ हवन सफल नही होते है।
गौ माता के दुध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारो रोगो की दवा है। इसके सेवन से असाध्य रोग मीट जाते है
गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है। उनकी अकाल मृत्यु नही होती है।
तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है। वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौलोकधाम मे वास मीलता है
गौ माता के गोबर से इधंन तैयार होता है।
गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यो की आराध्य है इष्ट देव है।
साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है।
गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है।
गौ माता मे दिव्य शक्तिया होने से संसार का संतुलन बना रहता है।
गाय माता के गौवंशो से भुमी को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है
गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है। गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है।
जंहा गौ माता निवास करती है। वह स्थान तिर्थ धाम बन जाता है।
गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तिर्थो के पुण्यो का लाभ मीलता है।
जीस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली मे गुड को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ
हथेली पर रखे गुड को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है।
गौ माता के चारो चरणो के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है।
गाय माता आनंद पुर्वक सासें लेती है । छोडती है। वहा से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है। सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। वातावरण शुद्ध होता है
गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे
गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लीये है।
जब गौ माता बछडे को जन्म देती तब पहला दुध बांज स्त्री को पिलाने से उनका बांजपन मीट जाता है।
स्वस्थ गौ माता का गौ मुत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपडे मे छानकर सेवन करने से सारे रोग मीट जाते है !
गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जीसे भी देखती है। उनके उपर गौकृपा हो जाती है !
गाय इस संसार का प्राण है।
काली गाय की पुजा करने से नोह ग्रह शांत रहते है। जो मन पुर्वक धर्म के साथ गौ पुजन करता है। उनको शत्रु दोषो से छुटकारा मीलता है।
गाय धार्मिक आर्थिक व सांस्कृतिक आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है।
गाय ऐक चलता फीरता मंदिर है। हमारे सनातन धर्म में तैतिस कोटी देवी देवता है। हम रोजाना तैतीस कोटी देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नही कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते है।
कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफन नही हो रहा हो तो गौ माता के कान मे कहीये रूका हुआ काम बन जायेगा
जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।
गौ माता सर्व सुखों की दातार है।
मैं प्रत्येक बुध्दिमान् मनुष्य को कह रहा हूँ कि यह गाय रूद्र की माँ हैं, वसु की बेटी है तथा आदित्य की बहन के समान हैं | यह गाय दूध, दही, घी, मक्खन रूप अमृत का खजाना है | इसलिए इस निरपराध, मारने के अयोग्य गाय को तू मत मार ||
वैदिक विधान (ऋग्वेद ८/१०१/१५)
यक्षगीता मे यक्ष ने युधिष्ठर से कई प्रश्न किये जिसमे एक प्रश्न यह भी था ' किममृतम् ' - अमृत क्या है ? जिस पर युधिष्ठर ने उत्तर दिया ' गवामृतम् ' - गोदुग्ध ही अमृत है । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार गो दुग्ध स्निग्ध , मधुर , शीतल , एवं समस्त रोगों का नाशक है जिसमे पौष्टिक तत्त्वों का भण्डार है - ४% प्रोटीन , ५% शर्करा , ४% वसा , ८७% जल तथा १-२% अन्य तत्त्वों के अलावा ११ प्रकार के विटामिन्स एवं ८ प्रकार के प्रोटीन , ३ प्रकार की दुग्ध गैस तथा १२ प्रकार के पिगमेंटस भी पाये जाते हैं । गौ दुग्ध मे पाया जाने वाला सेरिव्रोसाइस मस्तिष्क और स्मरण शक्ति के विकास मे सहायक होता है व स्ट्रानटाइन अणु विकारों का प्रतिरोधक होता है , MDGI प्रोटीन के कारण रक्त कोशिकाओं मे कैंसर प्रवेश नही करता तथा गाय के दूध से कोलेस्ट्राल भी नही बनता ।
भैंस के दूध की तुलना मे गाय के दूध मे केरोटीन १० गुना ज़्यादा पाया जाता है जबकि विटामिन ' ए ' सिर्फ गाय के दूध मे ही पाया जाता है किसी भी अन्य के दूध मे नही । भैंस के दूध को गरम करने पर उसके पोषक तत्त्व मर जाते है जब कि गाय के दूध मे एैसा नही होता । ममतामयी एवं सात्त्विक होने के कारण गौमाता का दूध भी सात्त्विक , पतला एवं सुपाच्य होता है । गाय के दूध का कोई विकल्प नही है , विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार माँ के दूध के बाद गाय का दूध ही मानव के लिये श्रेष्ठ है । दुर्भाग्य से आधुनिकता के चलते भैंस का दूध पी पी कर आधुनिक मानव की बुद्धि भी भैंस जैसी जड़ हो गयी है ।
गौ माता हमेशा स्वच्छ एवं स्वच्छ मे ही रहना भी पसंद करती है , वे कभी भी कीचड़ या अन्य गंदगी मे नही रहती हैं । मजबूरीवश उन्हे रहना पड़े यह एक अलग बात है । अगर आप को रोड क्रास करती हुयी गाय दिखेगी तो वे हार्न बजाने पर तुरंत आगे चली जायेंगीं जबकि भैंस को हार्न देने पर भी - भैंस या तो सुनेगी नही या फिर जड़ बुद्धि धीरे धीरे जायेगी । गौ माता का नवजात बछड़ा दूध पी कर हिरण की तरह कुलाँचे भरेगा जबकि भैंस का पाडा इधर उधर डोलेगा । भैंस पशु है जिसका दूध बहुत ही कम देशों मे सेवन किया जाता है ।
सऊदी अरब के अलखिराज मे अलशफीज ( मेहरबान- कृपालु ) मे ३५ हज़ार गायें है जिसमे ५ हज़ार भारतीय नस्ल की गायें है । इन गायों को वहाँ काटा नही जाता है अपितु इनका दूध रियाद स्थित शाही महल मे जाता है , शाही परिवार को भारतीय नस्ल की गायों का दूध ही पसंद आता है । वैज्ञानिकों की मान्यता है १० ग्राम घी जलाने से १ टन आक्सीजन पैदा होती है तथा वायुमण्डल मे एटामिक रेडिएशन का प्रभाव कम हो जाता है ।
सभी गाय जैसी दिखने वाली गौमाता नही होती हैं , सिर्फ भारतीय नस्ल की गायें जिनके पीठ पर गुंबद ( शिवलिंग ) होता है वही गौमाता कहलाती हैं । इसी रीढ़ की हड्डी मे सुर्यकेतु नाड़ी होती है जो सूर्य की किरणों को ग्रहण करती है और इसके क्रियाशील होने पर वह पीले रंग का पदार्थ - ' स्वर्णाक्षर ' छोड़ती है जिसके कारण देशी गाय का दूध , मक्खन , घी ( पीला ) स्वर्णकान्ति युक्त होता है और इसीलिये गौ माता हमेशा सूर्य के प्रकाश मे ही रहना पंसद करती हैं ।
देशी गाय की रंगो के अनुसार दूध के गुण भी बदल जाते है , लाल रंग की गाय का दूध - पित्तनाशक होता है , सफ़ेद रंग की गाय का दूध कफनाशक होता है , काले रंग की गाय का दूध पित्तनाशक होता है । दोपहर मे पिया जाने वाला गौ दुग्ध - बलवर्धक , कफ पित्तनाशक होता है तथा रात मे पिया जाने वाला गौ दुग्ध - दुर्बलता , बुढ़ापा दूरवकरने वाला होता है । चरकसंहिता अनुसार
स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छलम् ।
गुरु मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पय: ।।
गौ दुग्ध के दस गुण बताये गये हैं - स्वादिष्ट , शीतल , कोमल , चिकना , गाढ़ा , सौम्य , लसदार , भारी , बाहरी प्रभाव को विलम्ब से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला होता है । इसी तरह सुश्रुतसंहिता अनुसार गाय के दूध के दही को भी स्निग्ध , विपाक मे मधुर , पाचक , बलवर्धक , वातनाशक , शुद्ध एवं रुचिकारक कहा गया है ।
स्निग्धं विपाके मधुरं दीपनं बलवर्धनम् ।
वातापहं पवित्रं च दधि गव्यं रुचिप्रदम् ।।
।। वन्दे गौ मातरम् ।।
आज के इस विध्वंसक एवं हिंसक वातावरण की तीव्रता को समझते हुए ही हम “श्री शंखेश्वर जैन युवा मंडल” के सभी सदस्य यह प्रण लेते हुए “अहिंसा गोशाला” का कार्य सन २००२ से सुचारू रूप से चला रहे है कि हमारे संस्कार, हमारी संस्कृती की हम यथा संभव रक्षा कर सकें, भगवान महावीर एवं सभी महात्माओं के संदेश “जीओ और जीने दो” को यथाशक्ती साकार कर सकें !
यदी हम इतिहास के पन्नों को पलटकर देखेंगे तो जानेंगे कि क्यो हमारा महान देश भारत खुशहाल, समृद्ध और सुजलाम – सुफलाम था ! क्योकि मनुष्यों की संख्या से कई गुना अधिक गायों की संख्या होती थी, बैलों की संख्या थी ! इन गायों – बैलों की वजह से ही सम्पूर्ण भारत परिश्रमी था ! बैलों से खेत जोता जाता था, आवागमन का माध्यम था, खूब मेहनत करते थे और फिर गाय का दूध, दही, घी, आदी के सेवन से संपूर्ण भारत शक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि, करुणा का धनी था !
गोपालन से भारत वासियों में परोपकारिता, जीवदया , ममत्व, की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी ! गोधन से पूरा देश सम्पन्न था, ना कोई किसी का शत्रू था, ना किसी को किसी से इर्ष्या , ना मोह था ! उस समय किसी भी भारतीय को स्वर्ग में जाने की इच्छा ही नहीं होती थी ! क्योकि हमारा देश, हमारी संस्कृती , हमारी धरती ही स्वर्ग से भी सुंदर हुआ करती थी !
हमारी “जीओ और जीने दो” की संस्कृती ही हमारे देश की रीढ की मजबूत हड्डी थी जो दुसरे देशों के मुकाबले हमें १००० गुना शक्तिशाली साबित करती थी ! इसीलिए मुघलों ने और तत्पश्चात अंग्रेजो ने सबसे पहले हमारी भावनाओं को, हमारी संस्कृती को निशाना बनाते हुऐ उसपर वार किया और छल कपट, कूट निति से हमपर शासन करते हुए अपना जहर फैलाया और आज विश्वशक्ती बनने की खोखली होड में इस देश का यह आलम है कि जिस धरती पर कभी “दूधो नहाओ पूतो फलो” की प्रथा चलती थी, जिस धरापर “गाय” को माता की तरह पूजते थे, दूध की नदियाँ बहती थी उसी धरा को “गाय” के खून से लहू लूहान किया जा रहा है ! संस्कृत देश में संस्कृती को लज्जित किया जा रहा है, उसकी धज्जियाँ उडाई जा रही है ! आधुनिकीकरण एवम यांत्रिकीकरण के नाम पर हम से हमारी बैल गाडियाँ छिन लि गई ! ( बैल गाड़ियों का छिन जाना मतलब, मेहनत का छिन जाना, मेहनत का छिन जाना मतलब भूख का छिन जाना, भूख का छिन जाना मतलब भोजन का सेवन कम = कमजोरी = निरसता = आलस्य = आसान शिकार/ गुलाम)
पाश्चातीकरण का मुखौटा पहनाकर देश के ठेकेदार देश को नीलाम कर आरहे है, गिर्वी रख रहे है ! पूरे देश को एक बहुत ही बड़ी षडयंत्र का शिकार बनाया जा रहा है ! एक तरफ आधुनिकीकरण के नाम पर एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, ऐसे हालत पैदा किये जा रहे है, कि कृषी प्रधान राष्ट्र का किसान और ग्वाले अपना गोधन, पशुधन, अपनी भूमि, बेचकर आत्महत्या करने को मजबुर है और जिन सफ़ेद मगरमच्छो को हम अपने और देश के हित के लिए चुनते है, वो रोज़ घोटालों, के और महंगाई के तोहेफे हमें दे रहे है ! हमें बिलकुल भी उम्मीद नहीं है कि इस कलयुग में कोई शक्ति अवतरित होकर हमारे लिए, हमारे देश एवम् हमारी संस्कृतिके लिए कुछ सुखद एवम् सकारात्मक करेगी ! अतः, अब यह संपूर्ण तरहसे हमारी जिम्मेदारी है, हमारा दायित्व है कि इस दिशा में हम सभी एक ठोस कदम उठाएँ !
इसी उद्देश्य से परम पिता परमेश्वर की कृपा से, पूज्य गुरु भगवंतो की शुभाशिर्वाद से, सोलापूर श्री संघ के अनमोल सहयोग से एवम आदरणीय पंडितवर्य श्री कनुभाई शहा के प्रबल मार्गदर्शन से हम ‘श्री शंखेश्वर युवा मंडल ’ के युवक “अहिंसा गौशाला” का कार्य संभाल रहे है !
देश को बचाना है तो सबसे पहले संस्कृति को बचाना होगा, और संस्कृति को बचाना मतलब गोमाता को बचाना ! क्योंकि गोमाता ही हमारे कृषी प्रधान राष्ट्र की आत्मा है ! वह वैभव संपन्नता का केंद्र, निर्धनों का जीवन एवम् धनवानों की शोभा है ! शांत स्वाभाव की सजीव मूर्ति तथा परोपकारिता की साक्षात प्रतिमा है ! वह गोमाता हि थी जिसकी वजह से भारत को विश्वगुरु होनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था ! जैसा कि किसी महानपुरुष ने कहा है कि “ विश्व में जितना भी दुःख है वे ज्ञान के आभाव में है” ( जानकारी की कमी से ) तो यदी गायों की सर्व सही उपयोगिता की जानकारी दी जाये तो किसान ग्वाले तो क्या, कसाई भी गो हत्या बंद कर देंगे !
वैज्ञानिकों की खोज के अनुसार गौ दुग्ध में :-
यदि एक वाक्य में कहें तो, “ गाय बचेगी तो देश बचेगा !”
मगर आज दुर्भाग्यवश हमारे देश में हर गाँव, शहर और महानगारों के सहस्त्र बूचडखानों के साथ दर्जनों यांत्रिक कत्ताल्खानों में रोज लाखों गौएँ कट रही है ! मांसाहार के कारन हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है ! ( ८०% से भी ज्यादा गायों को स्वयं सेवन के लिए नहीं बल्कि निर्यात के लिए काटा जा रहा है ! लाखों गायों की तस्करी हो रही है, आज भारत विश्व का सबसे बड़ा गो-हत्यारा, गो- मांस निर्यातक की सूची में शामिल है !)
भारतीय गोवंश का गला घोटा जा रहा है, इन्सानियत बिक रही है और हमारे तथाकथित आज़ाद हिन्दुस्थान कि सरकार आज भी भारत के कई राज्यों में गोवंश हत्या प्रतिबंध क़ानून लगाने में असमर्थ है और जिन राज्यों में लगाया भी है तो वो केवल औपचारिकता के तौर पर ! भारत जैसे कृषी प्रधान देश में गोवंश की हत्या से बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है और यदि मौत का यह तांडव रुका नहीं तो हमारे देश को बद से बत्तर हालातों का सामना करना पड सकता है ! इस ब्रम्हांड में जितने भी धर्म है उन सभी का मूल सार दया, प्रेम और करुणा ही है और सृष्टि के महान जिव होने के नाते हम मनुष्यों का यह परम कर्तव्य बनता है की हम सृष्टि के सभी जीवों को जीने का अवसर दें, उनकी मदत करें ! इसीलिए हम “श्री शंखेश्वर जैन युवा मंडल- सोलापूर” के युवक आप श्री से हार्दिक निवेदन करते हैं कि आप भी इस विषय में गंभिरता से चिंतन करते हुए "अहिंसा गोशाला " के इस शुभ कार्य का हिस्सा बने ! ताकी गो रक्षा हो सके, जिससे हमारा बिता हुआ गौरव हम पुन:श्च प्राप्त कर सकें ! वरना कहीं ऐसा ना हो की हमारा गोधन हमेशा के लिए समाप्त होकर विलुप्त हो जाए और हमारी आनेवाली पिढी को ‘गाय’ मात्र किताबों में देखने को मिले !
आप किसी भी माध्यम से इस महान कार्य में जुड सकते है ! चाहे तन से, मन से, या चाहे धन से ! कहतें है कि“प्रेम बाटने से बढ़ता है और गम बाटने से घटता है” जन्मदिन, विवाह कि सालगिरह और खुशियों कि एसी अनेक घडियों को हम अपने मित्र सहपाठियों के साथ साथ गोशाला के अबोल पशुयों को थोडीसी खुशियाँ देकर (चारा, लापसी खिलाकर या दान देकर ) भी यादगार बना सकते है ! ऐसा करने से उन गायों के आशीर्वाद से हमारा एवम् हमारे बचों का भविष्य और स्वास्थ्य अवश्य ही उज्वल होगा और हमारे स्वर्गवासी बुजुर्गों के नाम से ऐसा करने पर उनकी आत्मा को भी परम शांती मिलेगी ! अपनी खुशियों को दुगुना करने का एवम् अपने स्वर्गवासी बुजुर्गो को भाव भरी श्रद्धांजली देने का इससे सुंदर अवसर शायद ही मिले !
मंडल का मुख्य लक्ष्य गौरक्षा और जीवरक्षा होने से मंडल का कार्य केवल गौशाला तक ही सिमित नहीं रखकर, गाँव- गाँव जाना, किसानों को प्रबोधन करना, गायों की उपयोगीता एवम महत्त्व समझाना और प्रसंग पड़ने पर लावारिस गायों को चारा खिलाना, उनके छोटे-बडे ऑपरेशन करवाना आदी कार्य भी शामिल है !
🔸न्युझीलंडमधे लहान वयातील मुलांमध्ये मधुमेहाचे प्रमाण प्रचंड प्रमाणात वाढले होते.त्याची कारणे शोधण्यासाठी शासनाने तज्ज्ञांची समिती 1993 मधे नेमली होती.या समितीने मधुमेही लहान मुलांच्या आहाराचे जैवरासायनिक विश्लेषण ( biochemical analysis ) केले तेव्हा त्यांच्या निदर्शनास धक्कादायक बाब आली ती म्हणजे या सर्व रोगाचे कारण म्हणजे जर्सी , होल्स्टेन फ्रीजीयन , रेड डॅनिश या काउ चे दुध हे आहे.या संशोधनानंतर या विषयावर परत 97 वेळा विविध तज्ज्ञ्यांनी अभ्यास केला.सर्वांचा निष्कर्ष सारखाच आहे. भारतीयांचे डोळे खाडकन उघडावे अशी घटना म्हणजे जेव्हा या शास्रज्ञांनी भारतीय वंशाच्या गायीच्या दुधाचा अभ्यास केला तेव्हा त्यांच्या असे लक्षात आले की भारतीय गायीचे दुध हे A2 प्रकारचे असुन ते आरोग्यासाठी अत्यंत उपयुक्त आहे .इतकेच नाही तर मधुमेह ह्रदयरोग कॅन्सर इ.विविध आजार दूर करण्याची त्यामधे क्षमता आहे.भारतीय देशी गायीच्या तुपामुळे ह्रदयरोग्याच्या रक्तवाहिन्यांमधील कोलेस्टेरॉल दूर होते तर गोमुत्रामुळे कॅन्सर बरा होतो.विचार करा आपल्या प्राचीन भारतीय ऋषीमुनींचा अभ्यास किती सखोल होता ते.जे आधुनिक शास्त्रज्ञांना समजायला इतकी वर्षे लागली की देशी गायीचे दुध तूप गोमूत्र मानवी आरोग्यासाठी वरदान आहे हे हजारो वर्षापुर्वीच आपल्या आयुर्वेदात सांगितलंय .ज्याप्रमाणे महाभारतामधे कृष्णाला विषारी दुध पाजून मारायला पुतना नावाची राक्षसीण आली होती अगदी त्याच पध्दतीने सध्या भारतीयांपुढे जर्सी होल्स्टेन फ्रीजीयन या प्राण्यांच्या दुधाचे ओढवुन घेतलेले संकट आहे असे कोणाला वाटल्यास त्यात अतिशयोक्ती नाही.
🔸 दुधावरील या संशोधनामुळे न्युझीलंड , अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटन , ब्राझील या देशांमधे जर्सी ,होल्स्टेन फ्रिजियन या प्राण्यांचे A1 दूध पिणे बंद केले असुन भारतीय गायींच्या दुधाला प्रचंड मागणी वाढली आहे.इतकेच काय पण तिथे विकल्या जाणाऱ्या दुधाच्या पिशव्यांवरही ते दुध A1 आहे की A2 आहे हे लिहिण्याचे बंधन आहे.खरे तर भारतातही दुधाच्या पिशव्यांवर त्यातील दूध हे A1 आहे की A2 आहे हे लिहिण्याची मागणी ग्राहकांनी करायला हवी कारण आपण काय विकत घेतो त्याबद्दल जाणुन घेण्याचा ग्राहकांना कायद्याने पूर्ण अधिकार असतो.जसे तंबाखू, सिगारेटच्या पॅकेटवर त्याचे सेवन आरोग्यास घातक असल्याची सूचना लिहिली जाते त्याप्रमाणे ...
🔸भारतात मात्र या बाबतीत पूर्ण गोंधळच आहे.अजुन आम्हाला दुधाच्या A1 व A2 मधील फरकच माहित नाही.सर्वसामान्य जनतेला गायीचे दूध (cow milk)या गोंडस नावाने जर्सी या घाणेरड्या प्राण्याचे रोगकारक A1 दुध विकले जाते.सध्या लोकाना आपली खरी गाय कोणती व विदेशी जर्सी प्राणी कोणता हा फरकच समजानासा झालाय.इतका की अगदी Whats app च्या smileys मधे देखील हे जर्सीचे चित्र दिले आहे,त्यास आपण गैरसमजाने गाय समजतोय.देशी गाय व जर्सी हे एकमेकांपासुन पूर्ण वेगळे आहेत.दोन्ही समोर ठेऊन निरीक्षण करा म्हणजे फरक समजेल. जर्सीचे दुध प्यायल्यामुळे मधुमेहाचे प्रमाण प्रचंड वाढले आहे.अगदी लहान मुलांमध्ये देखील मधुमेहाचे प्रमाण खूप वाढले आहे.आम्ही एकीकडून मधुमेहावर उपाय म्हणून महागडी औषधे घेतो तर दुसरीकडे गायीचे समजून जर्सीचे A1 दुध पितो.कसा रोग बरा होणार ??आहे की नाही गोंधळ ??
🔸गेल्या 40 वर्षांपासुन विदेशातून जर्सी भारतात आणल्या तेंव्हापासून भारतात मधुमेहाचे प्रमाण प्रचंड वाढले आहे.आपल्या शास्त्रज्ञानी श्वेतक्रांतीच्या नावाखाली भारतीय देशी गायींचे विदेशी जर्सी प्राण्यांबरोबर संकर करुन भारतीय गायींचा वंश नासवला . त्यामुळे देशी गायींच्या 80 पैकी 57 जाती नामशेष झाल्या व जर्सीचे रोगकारक दूध पिण्याची वेळ जनतेवर आली. एके काळी देशी गायींच्या दुधाने समृध्द असणाऱ्या आपल्या देशात आज देशी गायीचे दूध मिळणे अवघड बनले.देशी गायीचे तूप मिळणे तर फारच दुर्मिळ , कसेबसे राजस्थानातील पथमेडा या ठिकाणी शुध्द देशी गायींना जतन केले आहे . प्रयत्नपूर्वक तेथील शुध्द गायीचे तुप मिळू शकते ही त्यातल्या त्यात जमेची बाब.परदेशांनी मात्र गेल्या काही वर्षात भारतामधून देशी गायी नेऊन त्यांची उत्तम शुध्द स्वरुपात जोपासना केली आहे.ब्राझीलमधे साठ लक्ष शुध्द भारतीय गीर गायी आहेत.तर मूळ भारतात त्यांची संख्या शिल्लक आहे फक्त तीन हजार... ब्राझीलमधे एका भारतीय गीर गायीचे दिवसाचे दूध उत्पादन आहे 64 लिटर.(इंटरनेटवर ही सर्व माहिती आहे.)असे असुनही आपले डोळे अजूनही उघडलेले नाहीत.भारतात आजही दिवसाला लक्षावधी देशी गायींचा जर्सीबरोबर संकर करुन त्यांचा वंश आपण नासवून विषारी बनवत आहोत.हे असेच चालू राहिले तर येत्या पाच वर्षात देशी गायी भारतातून नामशेष होतील असा इशारा तज्ज्ञांनी भारताला दिला आहे.
मित्रांनो , आपल्या घरी विकत घेतले जाणारे दूध खऱ्या देशी गायीचे आहे की त्या नावाखाली जर्सीचे दूध आहे हे तपासा. देशी गायीच्या दुधाचे सेवन करुन आरोग्य सांभाळा . तसेच बाहेर जेवताना पनीर ,चीज हे कोणत्या दुधापासुन बनवले आहे याची खात्री करुन आपले व कुटुंबाचे आरोग्य जपा ही विनंती.
अतिशय छान माहिती.जास्तीत जास्त लोकांपर्यंत हे सत्य पोहोचवा ही विनंती .
Forwarded by Dr.Sunil Adangale , Ph.D. ,Animal Science and Dairy Tech.MPKV .Rahuri
चाकलेट का नाम सुनते ही बच्चों में गुदगुदी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बच्चों को खुश करने का प्रचलित साधन है चाकलेट। बच्चों में ही नहीं, वरन् किशोरों तथा युवा वर्ग में भी चाकलेट ने अपना विशेष स्थान बना रखा है। पिछले कुछ समय से टॉफियों तथा चाकलेटों का निर्माण करने वाली अनेक कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों में आपत्तिजनक अखाद्य पदार्थ मिलाये जाने की खबरे सामने आ रही हैं। कई कंपनियों के उत्पादों में तो हानिकारक रसायनों के साथ-साथ गायों की चर्बी मिलाने तक की बात का रहस्योदघाटन हुआ है।
गुजरात के समाचार पत्र गुजरात समाचार में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार नेस्ले यू.के.लिमिटेड द्वारा निर्मित किटकेट नामक चाकलेट में कोमल बछड़ों के रेनेट (मांस) का उपयोग किया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किटकेट बच्चों में खूब लोकप्रिय है। अधिकतर शाकाहारी परिवारों में भी इसे खाया जाता है। नेस्ले यू.के.लिमिटेड की न्यूट्रिशन आफिसर श्रीमति वाल एन्डर्सन ने अपने एक पत्र में बतायाः “ किटकेट के निर्माण में कोमल बछड़ों के रेनेट का उपयोग किया जाता है। फलतः किटकेट शाकाहारियों के खाने योग्य नहीं है। “ इस पत्र को अन्तर्राष्टीय पत्रिका यंग जैन्स में प्रकाशित किया गया था।
सावधान रहो, ऐसी कंपनियों के कुचक्रों से! टेलिविज़न पर अपने उत्पादों को शुद्ध दूध से बनते हुए दिखाने वाली नेस्ले लिमिटेड के इस उत्पाद में दूध तो नहीं परन्तु दूध पीने वाले अनेक कोमल बछड़ों के मांस की प्रचुर मात्रा अवश्य होती है।
हमारे धन को अपने देशों में ले जाने वाली ऐसी अनेक विदेशी कंपनियाँ हमारे सिद्धान्तों तथा परम्पराओं को तोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। व्यापार तथा उदारीकरण की आड़ में भारतवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
हालैण्ड की एक कंपनी वैनेमैली पूरे देश में धड़ल्ले से फ्रूटेला टॉफी बेच रही। इस टॉफी में गाय की हड्डियों का चूरा मिला होता है, जो कि इस टॉफी के डिब्बे पर स्पष्ट रूप से अंकित होता है। इस टॉफी में हड्डियों के चूर्ण के अलावा डालडा, गोंद, एसिटिक एसिड तथा चीनी का मिश्रण है, ऐसा डिब्बे पर फार्मूले (सूत्र) के रूप में अंकित है। फ्रूटेला टॉफी ब्राजील में बनाई जा रही है तथा इस कंपनी का मुख्यालय हालैण्ड के जुडिआई शहर में है। आपत्तिजनक पदार्थों से निर्मित यह टॉफी भारत सहित संसार के अनेक अन्य देशों में भी धड़ल्ले से बेची जा रही है।
चीनी की अधिक मात्रा होने के कारण इन टॉफियों को खाने से बचपन में ही दाँतों का सड़ना प्रारंभ हो जाता है तथा डायबिटीज़ एवं गले की अन्य बीमारियों के पैदा होने की संभावना रहती है। हड्डियों के मिश्रण एवं एसिटिक एसिड से कैंसर जैसे भयानक रोग भी हो सकते हैं।
सन् 1847 में अंग्रजों ने कारतूसों में गायों की चर्बी का प्रयोग करके सनातन संस्कृति को खण्डित करने की साजिश की थी, परन्तु मंगल पाण्डेय जैसे वीरों ने अपनी जान पर खेलकर उनकी इस चाल को असफल कर दिया। अभी फिर यह नेस्ले कंपनी चालें चल रही है। अभी मंगल पाण्डेय जैसे वीरों की ज़रूरत है। ऐसे वीरों को आगे आना चाहिए। लेखकों, पत्रकारों को सामने आना चाहिए। देशभक्तों को सामने आना चाहिए। देश को खण्ड-खण्ड करने के मलिन मुरादेवालों और हमारी संस्कृति पर कुठाराघात करने वालों के सबक सिखाना चाहिए। देव संस्कृति भारतीय समाज की सेवा में सज्जनों को साहसी बनना चाहिए। इस ओर सरकार का भी ध्यान खिंचना चाहिए।
ऐसे हानिकारक उत्पादों के उपभोग को बंद करके ही हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए हमारी संस्कृति को तोड़नेवाली ऐसी कंपनियों के उत्पादों के बहिष्कार का संकल्प लेकर आज और अभी से भारतीय संस्कृति की रक्षा में हम सबको कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे आना चाहिए।
आज कल गायों को मारा जा रहा है... गौ हत्या पर मुझे
एक कविता मिली वह कविता मैं आप सब के साथ शेयर
करना चाहता हूँ...
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अमृत जैसा दूध पिला कर मैंने तुमको बड़ा किया......
अपने बच्चे से भी छीना पर मैंने तुमको दूध दिया...
रूखी सूखी खाती थी मैं, कभी न किसी को सताती थी मैं......
कोने में पड़ जाती थी मैं, दूध नहीं दे सकती अब तो गोबर से काम तो आती थी मैं....
मेरे उपलों की आग से तूने, भोजन अपना पकाया था.......
गोबर गैस से रोशन कर के तेरा घर उजलाया था.......
क्यों मुझको बेच रहा रे, उस कसाई के हाथों में...??
पड़ी रहूंगी इक कोने में, मत कर लालच माँ हूँ मैं.......
मर कर भी है कीमत मेरी, खाल भी तेरे काम आए......
मेरी हड्डी की कुछ कीमत, शायद तू ही घर लाए.......
मैं हूँ तेरे कृष्ण की प्यारी वह कहता था जग से न्यारी......
उसकी बंसी की धुन पर मैं, भूली थी यह दुनिया सारी.......
मत कर बेटा तू यह पाप, अपनी माँ को न बेच आप.......
रूखी सूखी खा लूँगी मैं किसी को नहीं सताऊँगी मैं तेरे
काम ही आई थी मैं
तेरे काम ही आउंगी मैं....!!!
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अगर आप गौ से प्यार करते हैं तो गौ माता की यह
पीड़ा जन जन तक पहुँचाने के लिये कृपया कुछ पल का समय
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